संबलपुर, जिला-कांकेर, (छ .ग.)
विषय-महक,विधा-मुक्त छंद
दिनाँक-26.10.20
महक
कर्म कुछ ऐसा करे जीवन
फूलों सा महक जाएं,
जीवन के हर मोड़ पर
खुशियाँ बस लहक जाएं।
ऐ!जिंदगी सुकर्मों से
तुझे मैं सजाऊंगा,
जमाना देखता रहे और
यश से चहुँओर चक जाएं।
हयात-ए-मौत की
चिंता नहीं है मुझे,
डर है बस कहीं तुम्हारी
नरगिसी आँखें ना छलक जाएं।
तमाम रिश्तों को भूलाता
रहा भलमनसाहत के लिए,
तुम्हारी चाहतों में कहीं
ये दिल ना बहक जाएं।
चाहता नहीं दरिया
कभी समंदर से मिले,
मगर ये हकीकत है
कभी दुबारा ना सनक जाएं।
व्याख्या-प्रस्तुत कविता में जीवन को सुकर्मों से महकाने के साथ जीवन की वास्तविकता को बताया गया है।
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नलिनी बाजपेयी
संबलपुर, कांकेर,(छ .ग.)
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