Monday, October 26, 2020

बलौदाबाजार से संतराम कुम्हार की रचना- महक

रचनाकार -  संतराम कुम्हार 
   जिला -  बलौदाबाजार (छ. ग.) 
     विधा - मुक्त कविता 
   शीर्षक - " महक "
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मुस्कुराते सुन्दर नन्हें फूल, 
सजे देखो उपवन में। 
भौंरे मंडराती इन पर सदा, 
मग्न रहती अपने ही मन में।। 

भाँति-भाँति फूलों की झाड़ियाँ, 
मनमोहक इनकी खुशबू है। 
चंदन-सा गुण सत्संग में,
दूर करती जीवन की गंदी बू है।। 

फूलों की महक महकती, 
ज्यों बगिया के चारों ओर। 
चरित्र की सुगंध से सुगंधित होती, 
नभ से धरती की छोर।।

दर-दर भटकता ये मानव,
परमात्मा की तलाश में।
जैसे मृग, कस्तूरी सुगंध को, 
खोजता अपने ही आस-पास में।। 

आत्मा में ही परमात्मा का वाश है। 
मोह-माया का बनता क्यों दास है। 
भक्ति से महका ले अपनी जिंदगी, 
व्यर्थ होता क्यों तू उदास है।।

सदाचार की ही पूजा होती, 
कर ले तू सत्य व्यवहार। 
खुशबू से तीव्र बू है फैलती,
बहुत अनोखा यह संसार।। 

बंधुत्व,भाईचारे की महक तुम्हें, 
जीवन भर फैलाना है। 
श्रद्धा, प्रेम की दीप जलाकर, 
उजियारा मन में लाना है।। 
                              
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मौलिक रचना (स्वरचित) 
संतराम कुम्हार 
बलौदाबाजार (छ.ग.)

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