Monday, October 26, 2020

दुर्ग से अनुरमा शुक्ला की रचना- महक

रचनाकार -अनुरमा शुक्ला
स्थान- दुर्ग (छ.ग)
विधा- मुक्त
विषय- महक
शीर्षक- देश की माटी की     
               महक


नई नवेली ब्याहता की गजरे की महक,
वो सात फेरों ,सात वचन संग हल्दी की महक,
उसके हाथों मे रची मेंहदी की मनभावन महक,
महक रही थी सारी फिजायें जैसे रातरानी,हरसिंगार हर तरफ बिखरी हो,
कितने सपने तैरने लगे थे आँखो मे उनके,
 दोनों मिलकर सुंदर भविष्य लगे थे गढ़ने ।

भला खुश्बु कहाँ ठहरती है एक ही जगह,
बह जाती है हवाओं के संग लेकर उमंग,
बुलावा जो आया उसका सीमा पार से,
दुश्मन फिर वार को तैयार थे,
छोड़ आया भविष्य के सपने,  गजरे का मखमली एहसास, संग छूटा माँ का हाथ, जिसमें स्वादिष्ट रसोई महकती थी ।

रोने लगा आसमान, भीगने लगी धरा भी,
सौंधी खुश्बू से सराबोर सारी जमीन थी,
ये उसके देश की मिट्टी की महक थी,
 तन-मन महक उठा उस माटी की खुश्बू से, 
जिसके आगे सारी महक फीकी थी,
 सब छोड़ वह देश का सपूत वतन की रक्षा को चल पड़ा,
भाल पर लगा तिलक माटी का जिसमे वीर शहीदों की महक थी ।

No comments:

Post a Comment

दुर्ग से प्रिया गुप्ता की रचना- चाहत

कवि-प्रिया गुप्ता जिला- दुर्ग राज्य-छत्तीसगढ़ शीर्षक-चाहत विधा-काव्य संपर्क-7974631528  दीवानगी दीवानों की वफ़ा है दोस्तो   काति...